पाषाण संस्कृति के साथ ही मानव उत्थान के पद चिन्ह यहां मौजूद है ।
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इसे ताम्र पाषाण संस्कृति न कह कर इसे केवल ताम्र संस्कृति कहा जाय तो उचित होगा।
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पूरी दुनिया में अपने प्रकार का अजूबा कहलाने वाला पाषाण संस्कृति का प्रतीक गोटमारमेला पाढुर्णामें 31अगस्त को आयोजित हो रहा है।
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विद्वान मानते हैं कि उत्तरी राजस्थान में घग्घर नदी के सूखने पर उत्तरकालीन हड़प्पा मानव ने मेवाड़ के सुरक्षित क्षेत्र में प्रवेश किया होगा और उनके सम्बन्ध मध्यकालीन ताम्र पाषाण संस्कृति से हुए।
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विद्वान मानते हैं कि उत्तरी राजस्थान में घग्घर नदी के सूखने पर उत्तरकालीन हड़प्पा मानव ने मेवाड़ के सुरक्षित क्षेत्र में प्रवेश किया होगा और उनके सम्बन्ध मध्यकालीन ताम्र पाषाण संस्कृति से हुए।
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श्री एच. डी. सांकलिया ने माना है कि इस क्षेत्र की खुदाई में लघु पाषाण उपकरणों का अभाव मिलता है और ताम्र उपकरणों का बहुलता में प्रयोग मिलता है अत: इसे ताम्र पाषाण संस्कृति न कह कर इसे केवल ताम्र संस्कृति कहा जाय तो उचित होगा।